जय श्री माँ त्रिपुरा सुंदरी
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श्री त्रिपुरा सुंदरी मंदिर और पंचाल समाज 14 चोखरा का आधिकारिक डिजिटल पोर्टल
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माँ त्रिपुरा सुंदरी
मंदिर का परिचय
श्री त्रिपुरा सुंदरी मंदिर - वागड़ की पवित्र भूमि
पवित्र भौगोलिक स्थिति
राजस्थान के दक्षिणी भाग की अरावली पर्वतमालाओं से घिरा हुआ और नदियों, तालाबों व प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर क्षेत्र बांसवाड़ा कहलाता है। यह वागड़ क्षेत्र प्राचीन काल से ही धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है। बांसवाड़ा को मिनी काशी भी कहा जाता है।
यहाँ अनेकों प्राचीन मंदिर स्थित हैं जो अपने शिल्प, वास्तुशिल्प, और भव्यता के कारण न केवल राजस्थान में, बल्कि पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध हैं।
मंदिर स्थान:
बांसवाड़ा मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर, तलवाड़ा गांव के पास स्थित। आरंभ में इस मंदिर को तारताई माता के नाम से जाना जाता था।
पुराणों में वर्णन
वागड़ क्षेत्र को पारंपरिक रूप से पवित्र भूमि माना गया है। इसका उल्लेख विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में मिलता है:
प्राचीन नाम:
- • स्कंदपुराण में: 'गुप्त प्रदेश'
- • राजा भोज के शिलालेखों में: 'स्थली मंडल'
- • पुराणों में: 'कुमारिका खंड' एवं 'वागुरी क्षेत्र'
माही नदी की महिमा:
इस क्षेत्र से बहने वाली माही नदी को पुराणों में 'कलियुगी माही गंगा' कहा गया है। संतों और ऋषियों ने तीन नदियों के संगम की भव्यता का वर्णन करते हुए यहाँ माही नदी में स्नान को पावन और गौरव का विषय बताया है।




मंदिर का वातावरण एवं महत्व
प्राकृतिक सौंदर्य:
मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत, प्राकृतिक, जागृत और दर्शनीय है। माही नदी के पवित्र क्षेत्र में स्थित यह मंदिर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है।
श्रद्धालुओं का आगमन:
प्रतिवर्ष राजस्थान सहित पड़ोसी राज्यों गुजरात एवं मध्यप्रदेश से श्रद्धालु यहाँ माँ के दर्शन के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।
शक्ति पीठ:
यह स्थान राजस्थान के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक माना जाता है।
मंदिर प्रबंधन एवं सुविधाएं
प्रबंधन व्यवस्था:
मंदिर परिसर की प्रबंधन व्यवस्था और सुरक्षा हेतु ट्रस्ट द्वारा नियुक्ति:
- • एक पुजारी
- • एक प्रबंधक
- • एक सुरक्षा रक्षक (सेवानिवृत्त फौजी)
मुख्य सुविधाएं:
भूमि एवं संपत्ति:
- • 37.15 बीघा कृषि भूमि (सिंचाई हेतु पक्का कुआं)
- • 3000 फीट लंबी सुरक्षा चारदीवारी
- • 15 बीघा बाग-बगीचे और पार्किंग हेतु आरक्षित
- • पूजा सामग्री और प्रसाद की दुकानों की श्रृंखला
Temple Timings
Daily Schedule for Darshan and Rituals
Activity | Summer | Winter |
---|---|---|
Opening Time | 5:00 AM | 5:30 AM |
Abhishek, Shringar, Pujan | 5:00 - 6:00 AM | 5:30 - 7:00 AM |
Darshan Begins | 6:00 AM | 7:00 AM |
Mangla Aarti | 7:00 AM | 7:30 AM |
Bhog Dharna | 12:00 PM | 12:00 PM |
Vishram (Rest) | 1:00 - 2:30 PM | 1:00 - 2:30 PM |
Darshan Resumes | 2:30 PM | 2:30 PM |
Sandhya Aarti | 7:15 PM | 6:30 PM |
Closing Time | 9:00 PM | 8:30 PM |
Currently Active: Summer Timings
Temple remains closed during Vishram time (1:00 PM - 2:30 PM)
माँ श्री त्रिपुरा के स्वरूप
साप्ताहिक श्रृंगार रंग योजना
क्रमांक | वार | पोशाक का रंग |
---|---|---|
1 | सोमवार | सफेद |
2 | मंगलवार | लाल |
3 | बुधवार | हरा |
4 | गुरुवार | पीला |
5 | शुक्रवार | नारंगी |
6 | शनिवार | आसमानी |
7 आज | रविवार | स्वर्ण पंचरंगी |
आज का श्रृंगार
आज माँ त्रिपुरा सुंदरी का श्रृंगार स्वर्ण पंचरंगी रंग में है

त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का इतिहास
Sacred History & Divine Heritage
मंदिर का प्राचीन स्वरूप
Historical Photographs of Temple Evolution

मंदिर का प्रवेश द्वार - प्रारंभिक काल

समुदायिक सभा - मंदिर परिसर

मंदिर निर्माण कार्य - सामुदायिक सहयोग

मंदिर नवीनीकरण काल

ऐतिहासिक मंदिर - समुदायिक उत्सव
ऐतिहासिक तस्वीरों का महत्व
ये दुर्लभ तस्वीरें मंदिर के विकास की गाथा कहती हैं। इनमें पंचाल समाज के सदस्यों का अटूट समर्पण, मंदिर के विभिन्न निर्माण चरण, और समुदायिक एकजुटता का प्रमाण मिलता है। प्रत्येक तस्वीर एक ऐतिहासिक क्षण को संजोए हुए है जो हमारी सांस्कृतिक विरासत का अमूल्य हिस्सा है।
माँ त्रिपुरा सुंदरी के मंदिर की संरचना
माँ त्रिपुरा सुंदरी के दिव्य स्वरूप
Divine Darshan of 18-Armed Goddess

माँ का पूर्ण दिव्य स्वरूप - 18 भुजाओं सहित

सुनहरे प्रभामंडल के साथ दिव्य रूप

दिव्य मुखारविंद का निकट दर्शन

स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित मुख

माँ के नेत्रों का दिव्य तेज
दिव्य दर्शन का महत्व
ये पावन छवियां माँ त्रिपुरा सुंदरी के दिव्य स्वरूप को दर्शाती हैं। अठारह भुजाओं वाली यह मूर्ति स्वर्ण आभूषणों, रंग-बिरंगे वस्त्रों, और ताजे फूलों की मालाओं से सुसज्जित है। माँ के दिव्य नेत्र, मुस्कान, और तेजोमय मुखारविंद भक्तों के हृदय में अपार शांति और आनंद का संचार करते हैं।
माँ त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति
• सिंहवाहिनी मूर्ति: अठारह भुजाओं वाली विशाल प्रतिमा
• ऊंचाई: लगभग 5 फीट ऊँची
• अस्त्र-शस्त्र: विभिन्न प्रकार के दिव्य आयुध धारण
• नौ दुर्गा: मंदिर की पीछे की दीवार पर शीतकालीन मूर्तियाँ
• श्री यंत्र: देवी के पवित्र चरणों के पास स्थापित
• प्रभामंडल: सुनहरा तेजोमय प्रभामंडल
• श्रृंगार: दैनिक फूल-माला और रंगबिरंगे वस्त्र

देवी त्रिपुरा के तीन स्वरूप
कुमारी कन्या
सुबह के समय
युवा सुंदरी
दिन के समय
पूर्ण विकसित
शाम के समय
देवी त्रिपुरा सुंदरी की तीन स्वरूपों में दर्शन होते हैं – प्रातः काल कुमारी कन्या के रूप में, दोपहर में एक युवा सुंदरी के रूप में, और सायंकाल में पूर्ण विकसित स्त्री के रूप में। इसी कारण इन्हें 'त्रिपुरा सुंदरी' कहा जाता है। माँ के इस दिव्य रूप को देखकर श्रद्धालु घंटों तक ध्यानमग्न हो जाते हैं।
देवी त्रिपुरा के तात्त्विक स्वरूप
शारीरिक (भौतिक) रूप
मूर्ति के रूप में दर्शन और पूजा-अर्चना
आध्यात्मिक रूप
ध्यान और आंतरिक साधना के माध्यम से
ज्ञानीजन माँ त्रिपुरा को दो रूपों में मानते हैं – शारीरिक (भौतिक) और आध्यात्मिक। दोनों रूपों के उपासक और भक्त विद्यमान हैं।
मंदिर की स्थापना एवं विकास का इतिहास
प्राचीन इतिहास
• विक्रम संवत 1540: शिलालेख से प्राप्त साक्ष्य
• काल: सम्राट कनिष्क के काल से भी पहले का अनुमान
• प्राचीन नगर: "गोडपोली" के तीन भाग
• सीतापुरी, शिवपुरी, विष्णुपुरी: तीन भाग
• नाम की उत्पत्ति: तीनों पुरी के बीच 'त्रिपुरा'
• शिलालेख: 'त्रियमारी' शब्द का उल्लेख
राजकीय संरक्षण
राज्यकाल में बांसवाड़ा, डूंगरपुर, गुजरात, मालवा और मारवाड़ के राजाओं द्वारा माँ त्रिपुरा सुंदरी की पूजा की जाती थी।
मंदिर का पुनर्निर्माण और विकास
विनाश और संरक्षण
मुस्लिम आक्रमणकारी जैसे मोहम्मद गजनवी या अलाउद्दीन खिलजी ने इस क्षेत्र के मंदिरों को नष्ट कर दिया था, परंतु भक्तों ने माँ की मूर्तियों की रक्षा की।
पुनर्निर्माण के चरण:
• प्राचीन काल: चांदा भाई एवं पाता भाई पंचाल (पंचाल समाज लोहार) का मार्गदर्शन
• 1157 ई.: पंचाल समाज चोखला द्वारा पहला शिखर स्थापना
• 1930 ई.: दूसरा शिखर स्थापित
• 1977 ई.: मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी की प्रेरणा से बड़े स्तर पर जीर्णोद्धार
ट्रस्ट पंजीकरण:
पंजीकरण: 23.12.1978
अधिनियम: राजस्थान सार्वजनिक ट्रस्ट अधिनियम 1959
ट्रस्ट नाम: "मंदिर श्री त्रिपुरा सुंदरी 14-चोखला पंचाल समाज"
क्षेत्राधिकार: बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले
मेलों और आयोजनों में योगदान
• सहस्त्र चंडी यज्ञ एवं शतचंडी यज्ञ
• 1981: 109 कुंडी महायज्ञ का आयोजन
• 8 मई 1992: पुनः शिखर स्थापना
• महायज्ञ संपन्न
हालिया विकास और आधुनिकीकरण
विकास कार्यों की सूची:
परिसर और नव निर्माण
• क्षेत्रफल: 15 बीघा भूमि में फैला परिसर
• प्रवेश द्वार: हनुमान मंदिर
• पीछे: नीलकंठ महादेव मंदिर (2004 में पुनःस्थापित)
• 5 अप्रैल 2006: स्वर्ण कीर्ति स्तंभ स्थापना
• स्थापनाकर्ता: 14-चोखला पंचाल समाज
• विधि: वैदिक विधि से उत्तर-पूर्व कोने में
निष्कर्ष
श्री त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक फैला हुआ है। पंचाल समाज 14 चोखरा के निरंतर प्रयासों से यह मंदिर आज एक भव्य और आधुनिक धार्मिक केंद्र बन गया है। माँ त्रिपुरा सुंदरी की कृपा से यह स्थान न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत का भी संरक्षण करता है।
Online Pujas & Donations
Book Your Sacred Rituals & Contribute to Temple Seva
Available Pujas
Maha Aarti
₹51Duration: 30 min
Navratri Special Pooja
₹101Duration: 1 hour
Havan & Yagna
₹501Duration: 2 hours
Abhishek Pooja
₹251Duration: 45 min
Sahasra Chandi Path
₹1001Duration: 3 hours
Annual Seva
₹5001Duration: Full Year
Scan QR Code for UPI Payment
Quick Amounts:
Secure Payment Gateway
Instant Receipt via Email
पंचाल समाज का परिचय
भारत की पारंपरिक लुहार जाति की एक विशिष्ट उपजाति - भगवान विश्वकर्मा के अनुयायी

जय विश्वकर्मा
पंचाल समाज 14 चोखरा
बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, उदयपुर
समाज का परिचय
पंचाल समाज, भारत की पारंपरिक लुहार जाति की एक विशिष्ट उपजाति है, जो मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में निवास करती है। यह समाज भगवान विश्वकर्मा को अपना आदिगुरु एवं आराध्य मानता है, जो शिल्प, वास्तु और निर्माण कार्यों के देवता हैं।
पारंपरिक रूप से पंचाल समाज धातु कार्य, लोहे व तांबे की वस्तुएं बनाने, औजार निर्माण, भवन निर्माण, शिल्पकला और मूर्तिकला जैसे व्यवसायों में निपुण रहा है। यह समाज 'कर्म को पूजा मानने' की भावना के साथ अपने परिश्रम और हुनर से समाज और राष्ट्र की सेवा करता रहा है।
मुख्य कौशल
धातु कार्य, औजार निर्माण, शिल्पकला
मुख्य क्षेत्र
राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश
पंचाल समाज की पहचान और विशेषताएँ
पारंपरिक व्यवसाय
लोहे, तांबे, पीतल आदि धातुओं से औजार बनाना, कृषि उपकरण तैयार करना, मशीनरी पार्ट्स और घरेलू वस्तुएं बनाना।
धार्मिक आस्था
भगवान विश्वकर्मा, माता त्रिपुरा सुंदरी और अन्य हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा।
शिक्षा और कौशल
आधुनिक समय में समाज ने शिक्षा, तकनीकी क्षेत्र, व्यवसाय और सरकारी सेवाओं में भी अग्रसरता दिखाई है।
संस्कृति और परंपरा
विवाह, त्योहार और पारिवारिक आयोजन पारंपरिक रीति-रिवाजों से संपन्न किए जाते हैं।
सामाजिक संगठन
पंचायत, समाज मंडल, और ट्रस्ट के माध्यम से एकजुटता और सामाजिक सेवा।
समाज के युवाओं को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाना।
पारंपरिक शिल्प और कार्यशैली को आधुनिक तकनीक से जोड़ना।
सामाजिक एकता और सहयोग की भावना को बनाए रखना।
महिला सशक्तिकरण और कौशल विकास को प्रोत्साहन देना।
राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़ और समीपवर्ती क्षेत्रों में फैले हुए
प्रत्येक चोखरा की अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान है, परंतु ये सभी पंचाल समाज की समृद्ध विरासत का हिस्सा हैं।
मंदिर ट्रस्ट प्रबंधन
Temple Trust Management
President

श्रीमान धूलजी भाई पंचाल
Shri Dhulji Bhai Panchal
पंचाल समाज 14 चोखरा के सम्मानित अध्यक्ष, मंदिर के विकास और संचालन में अग्रणी भूमिका निभाते हैं।
General Secretary

श्रीमान नटवरलालजी पंचाल
Shri Natwarlal Ji Panchal
मंदिर ट्रस्ट के महामंत्री, दैनिक प्रबंधन और समुदायिक कार्यों के संयोजक।
Temple Trust Information
ट्रस्ट विवरण
समुदायिक सेवा
• पंचाल समाज 14 चोखरा का प्रतिनिधित्व
• धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन
• समुदायिक कल्याण योजनाओं का संचालन
• मंदिर के दैनिक संचालन की देखरेख
संपर्क सूत्र
मंदिर कार्यालय:
पंचाल समाज कार्यालय:
सेवा का संकल्प
"माँ त्रिपुरा सुंदरी की कृपा से हमारा ट्रस्ट निरंतर समुदाय की सेवा में समर्पित है। धर्म, संस्कृति और सामाजिक कल्याण के माध्यम से हम सभी भक्तों की सेवा करते रहेंगे।"
सूचना एवं प्रेस विज्ञप्ति
महत्वपूर्ण सूचनाएं और आगामी कार्यक्रम
पंचाल समाज 14 चोखरा परिचय सम्मेलन
22 जून 2025, मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर
नवरात्रि महोत्सव 2025
9 दिवसीय भव्य आयोजन
सांस्कृतिक कार्यक्रम
पारंपरिक नृत्य एवं संगीत
दान शिविर आयोजन
समाज सेवा कार्यक्रम
शिक्षा एवं रोजगार सेमिनार
युवाओं के लिए मार्गदर्शन
निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर
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How to Reach & Contact
Complete Travel Guide to Sacred Shaktipeetha
One of the 51 Sacred Shaktipeeths in Banswara, Rajasthan
By Air
Udaipur Airport (UDR)
132 km
Nearest and most convenient airport. Hire taxi or take bus from Udaipur to Banswara (4-5 hours).
Alternatives:
• Indore Airport (166 km)
• Ahmedabad Airport (193 km)
By Train
Ratlam Junction (MP)
80 km
Major railway station well-connected to Delhi, Mumbai, Ahmedabad, and Jaipur.
Alternatives:
• Udaipur Junction (132 km)
• Dungarpur (105 km)
By Road/Bus
Banswara Bus Stand
20 km to temple
Well connected by RSRTC and private buses from major cities.
Alternatives:
• From Udaipur: 4-5 hours
• From Ratlam: 2 hours
• From Ahmedabad: 4 hours
By Personal Vehicle
Well-maintained roads
Scenic routes
Pleasant journey with good road connectivity from all major cities.
Alternatives:
• Udaipur: 132 km
• Ratlam: 80 km
• Ahmedabad: 193 km
Complete Temple Address
Shree Tripura Sundari Temple
Village Umrai, Near Talwara
District Banswara, Rajasthan – 327001
One of the 51 Sacred Shaktipeeths
Visitor Information
Open: Every day
Timings: 9:00 AM – 9:00 PM
Best time to visit: Navratri, Diwali, Sharad Poornima
Facilities: Parking, food stalls, local shops, resting areas
Maa Tripura Sundari Temple
Near Umrai Village, Banswara, Rajasthan
Plan Your Sacred Journey
Experience divine blessings at one of India's 51 sacred Shaktipeeths. Well-connected by air, rail, and road from all major cities.