मंदिर का परिचय
श्री त्रिपुरा सुंदरी मंदिर - वागड़ की पवित्र भूमि
पवित्र भौगोलिक स्थिति
राजस्थान के दक्षिणी भाग की अरावली पर्वतमालाओं से घिरा हुआ और नदियों, तालाबों व प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर क्षेत्र बांसवाड़ा कहलाता है। यह वागड़ क्षेत्र प्राचीन काल से ही धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है। बांसवाड़ा को मिनी काशी भी कहा जाता है।
यहाँ अनेकों प्राचीन मंदिर स्थित हैं जो अपने शिल्प, वास्तुशिल्प, और भव्यता के कारण न केवल राजस्थान में, बल्कि पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध हैं।
मंदिर स्थान:
बांसवाड़ा मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर, तलवाड़ा गांव के पास स्थित। आरंभ में इस मंदिर को तारताई माता के नाम से जाना जाता था।
पुराणों में वर्णन
वागड़ क्षेत्र को पारंपरिक रूप से पवित्र भूमि माना गया है। इसका उल्लेख विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में मिलता है:
प्राचीन नाम:
- • स्कंदपुराण में: 'गुप्त प्रदेश'
- • राजा भोज के शिलालेखों में: 'स्थली मंडल'
- • पुराणों में: 'कुमारिका खंड' एवं 'वागुरी क्षेत्र'
माही नदी की महिमा:
इस क्षेत्र से बहने वाली माही नदी को पुराणों में 'कलियुगी माही गंगा' कहा गया है। संतों और ऋषियों ने तीन नदियों के संगम की भव्यता का वर्णन करते हुए यहाँ माही नदी में स्नान को पावन और गौरव का विषय बताया है।




मंदिर का वातावरण एवं महत्व
प्राकृतिक सौंदर्य:
मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत, प्राकृतिक, जागृत और दर्शनीय है। माही नदी के पवित्र क्षेत्र में स्थित यह मंदिर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है।
श्रद्धालुओं का आगमन:
प्रतिवर्ष राजस्थान सहित पड़ोसी राज्यों गुजरात एवं मध्यप्रदेश से श्रद्धालु यहाँ माँ के दर्शन के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।
शक्ति पीठ:
यह स्थान राजस्थान के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक माना जाता है।
मंदिर प्रबंधन एवं सुविधाएं
प्रबंधन व्यवस्था:
मंदिर परिसर की प्रबंधन व्यवस्था और सुरक्षा हेतु ट्रस्ट द्वारा नियुक्ति:
- • एक पुजारी
- • एक प्रबंधक
- • एक सुरक्षा रक्षक (सेवानिवृत्त फौजी)
मुख्य सुविधाएं:
भूमि एवं संपत्ति:
- • 37.15 बीघा कृषि भूमि (सिंचाई हेतु पक्का कुआं)
- • 3000 फीट लंबी सुरक्षा चारदीवारी
- • 15 बीघा बाग-बगीचे और पार्किंग हेतु आरक्षित
- • पूजा सामग्री और प्रसाद की दुकानों की श्रृंखला